कैथी लिपि में शिरोरेखा क्यों नहीं होती ? | Kaithi
कैथी लिपि | Kaithi Script
कैथी लिपि में शिरोरेखा नहीं होती है।
शिरोरेखा क्यों नहीं होती है ?
इसे समझने के लिए हमें पहले इसकी उत्पत्ति को समझना होगा।
भारत में एक नहीं कई लिपियाँ हैं। ये लिपियाँ भी हमेशा से ऐसी नहीं रही थीं जैसी वे आज हमें देखने को मिलती हैं।
कैथी लिपि मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि का एक परिवर्तित रूप है। अर्थात कैथी लिपि की उत्पत्ति ब्राह्मी लिपि से हुई है। ब्राह्मी लिपि सम्पूर्ण एशिया में इस्तेमाल की जाती थी।
गुप्त काल में ब्राह्मी लिपि के दो भाग हो गए थे -
- उत्तरी ब्राह्मी लिपि - इस से गुप्त, शारदा, सिद्धम, कैथी, देवनागरी, मोदी, राजस्थानी, गुजराती, भुजिमोल, रंजना, महाजनी और मिथिलाक्षर लिपियाँ निकलीं।
- दक्षिणी ब्राह्मी लिपि - इस से तमिल, कलिंग, तेलगु, ग्रन्थ, अहोम और मलयालम लिपियों का उद्भव हुआ।
ब्राह्मी लिपि में अक्षरों को ऊपर से एक लकीर ( शिरोरेखा ) से बाँध कर शब्द बना कर लिखने का प्रचलन नहीं था।
संभवतः ब्राह्मी लिपि से उत्पत्ति होने के कारण ही कैथी लिपि में भी शिरोरेखा का प्रयोग नहीं होता था। शब्दों के बीच में दूरी नहीं होती थी।
अक्षरों को बाँध कर शब्द बनाने की कला ग्यारहवीं शताब्दी में विकसित हुई।
शिरोरेखा का ना होना कैथी लिपि की एक विशेषता थी।
शिरोरेखा विहीन होने के कारण इसे लिखने में समय कम लगता था, स्याही भी कम खर्च होती थी और मिटाना भी कम पड़ता था। इसकी वजह से यह लिपि द्रुत गति से लिखी जा सकती थी।
पहले के समय में निजी, प्रशासनिक एवं व्यापारिक गतिविधियों और आंकड़ों के संग्रहण के लिए तथा राजाओं के आदेशों को शीघ्रता से लिखने की आवश्यकता हुआ करती थी।
वस्तुतः अपनी सरल संरचना और द्रुत गति से लिखा जा सकना ही इसके इतने लोकप्रिय होने का कारण था।
शिरोरेखा के सन्दर्भ में कई अन्य मत भी हैं।
कैथी लिपि आज की नहीं, बल्कि आज से ७०० साल पुरानी लिपि है। उस समय ताम्र और शिला पर लिखने का प्रचलन था। इसके अतिरिक्त लिखते वक़्त निब को स्याही में डुबो कर इस्तेमाल किया जाता था। इस प्रकार से लिखने के कारण शिरोरेखा देना कठिन कार्य होता था।
कुछ लोगों के अनुसार शिरोरेखा देने से कैथी लिपि की सुंदरता भी बिगड़ जाती थी।
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जानें - क्या है कैथी लिपि ?
देखें - कैसे सीखें कैथी लिपि ?
There is no shirorekha in Kaithi Script.
Why ?
To understand this we must first understand the origin of this script.
Many scripts are prevailing in India. These scripts were also not always like the ones we see today.
Kaithi script is a modified form of the Brahmi script of the Mauryan period. It means, Kaithi script is derived from the Brahmi script. The Brahmi script was used throughout Asia.
During the Gupta period, Brahmi script was divided into two parts -
- Northern Brahmi script - From this originated the Gupta, Sharda, Siddham, Kaithi, Devanagari, Modi, Rajasthani, Gujarati, Bhujimol, Ranjana, Mahajani and Mithilakshar scripts.
- Southern Brahmi script - From this, the Tamil, Kalinga, Telugu, Granth, Ahom and Malayalam scripts emerged.
Brahmi script had no practice of forming words by tying the letters from above, with a line (Shirorekha).
It was probably due to its origin from Brahmi script that, Shirorekha was not used in Kaithi script. There was no distance between two words.
The art of forming words by tying letters developed in the eleventh century.
The absence of Shirorekha was a feature of the Kaithi script.
Due to the absence of a shirorekha, it took less time to write, less ink was spent and erasing was also less. Because of this, the script could be written at a faster rate.
In earlier times, there was a need for recording personal, administrative and business activities and collection of data and to write down the orders of the kings very rapidly.
In fact, the reason it became so popular was its simple structure and speedy writing.
There are many other theories regarding Shirorekha as well.
Kaithi is not a script of today, but it is a 700 years old script. At that time, writing on copper and rock was in vogue. Apart from this, a nib was used by dipping it in ink while writing. Due to writing in this way, it was a difficult task to give the headline (shirorekha).
Some people even quote that giving shirorekha also spoiled the beauty of Kaithi script.