कैथी लिपि | Kaithi Script
सभी को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ
हिन्दू धर्म का एक प्रमुख पर्व - नवरात्रि।
संस्कृत में नवरात्रि का अर्थ है नौ रातें। इन नौ रातों तक शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
वर्ष में कुल चार बार नवरात्रि होती है - चैत्र एवं आश्विन माह की नवरात्री को प्रकट नवरात्री भी कहा जाता है। आषाढ़, एवं माघ माह की नवरात्री के विषय में अधिक लोगों को जानकारी नहीं होती । इनमें गुप्त रूप से शक्ति की उपासना की जाती है, अतः इन्हे गुप्त नवरात्री भी कहा जाता है।
प्रथम शैलपुत्री
पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्मीं, इसलिए इनका नाम शैलपुत्री है। ये स्थिरता लाती हैं। दाएँ हाथ में त्रिशूल शत्रु संहार का एवं बाएँ हाथ में कमल शांति का प्रतिक है।
वन्दे वांछितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम
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द्वितीय ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचारिणी यानि तप का आचरण करने वाली। इनके बाएँ हाथ में कमण्डल और दाएँ हाथ में जप माला ज्ञान का प्रतिक है।
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा
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तृतीय चंद्रघंटा
इनके मस्तक पर घंटे के आकार में अर्धचन्द्र विराजित हैं, इसलिए इनका नाम चन्द्रघण्टा है। सिंह इनका वाहन है। शौर्य के लिए देवी माँ के इस रूप की आराधना की जाती है।
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
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चतुर्थ कूष्माण्डा
कू यानि थोड़ा, ऊषा यानि ऊर्जा और अंड का अर्थ है ब्रह्मांडीय अण्डा। माँ कूष्माण्डा ने ब्रह्माण्ड की रचना की। आध्यात्मिक उन्नति के लिए देवी के इस रूप की आराधना की जाती है।
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्याम् कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
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पंचम स्कन्दमाता
स्कन्द यानि कार्तिकेय की माता होने के कारण माँ दुर्गा के इस स्वरुप को स्कंदमाता कहा जाता है। स्कन्द उनकी गोद में विराजित हैं। इन्हे पद्मासन देवी भी कहा जाता है।
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया ।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ॥
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षष्ठम कात्यायनी
महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम दुर्गा माँ के इस स्वरुप की पूजा की थी, इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्द हुईं। ये कर्म करने के लिए प्रेरित करती हैं।
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शाईलवरवाहना ।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी ॥
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सप्तम कालरात्रि
इनका रूप रात्रि के अंधकार के समान काला माना गया है, इसलिए देवी के को कालरात्रि कहा गया है। इनके सिर पर केश बिखरे हुए हैं। देवी माँ का यह स्वरुप अति भयावह एवं उग्र है। यह रूप सभी भय से मुक्त कर देता है एवं ज्ञान और वैराग्य प्रदान करता है। ये शुभ फल देने वालीं हैं, इसलिए इन्हें शुभंकरी गया है।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा ।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी ॥
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अष्टम महागौरी
दुर्गा माँ इस स्वरुप में श्वेत वर्ण धारण किये हैं। ये वस्त्र भी श्वेत ही धारण करती हैं, इसलिए इन्हे श्वेताम्बरधरा भी कहते हैं। ये श्वेत बैल पर आरूढ़ हैं। ये हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं।
श्वेते वृषे समरूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः ।
महागौरी शुभम दद्यान्महादेवप्रमोददा ॥
नवम सिद्धिदात्री
अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व - ये आठ सिद्धियाँ होती हैं। देवी माँ का यह स्वरुप सिद्धियों को प्रदान करने वाला है, अतः इन्हे सिद्धिदात्री भी कहा जाता है। ये गुण विकसित करने के लिए प्रेरित करती हैं।
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि ।
सेव्यामाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ॥