कैथी लिपि क्या है | What is Kaithi Script
१. भाषा और लिपि में क्या अंतर है ?
भाषा हमारे विचारों को व्यक्त करने का साधन है। यह अभिव्यक्ति का मौखिक रूप है। मगही, अवधि, मैथिली, आदि भाषाएँ हैं।
२. कैथी क्या है?
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लिपि कैथी
अन्य नाम कायथी, कायस्थी
प्रकार आबुगिडा
भाषाएँ अंगिका, अवधी, भोजपुरी, हिन्दुस्तानी, मगही, मैथिली, नागपुरी
काल पाँचवी से बीसवीं शताब्दी के मध्य तक
पैतृक पद्धतियाँ ब्राह्मी, गुप्ता, नागरी, कैथी
समकालींन पद्धतियाँ देवनागरी, नंदनागरी, सिलहटी नागरी एवं गुजराती
लिखने की दिशा बाएँ से दाएँ, ऊपर से नीचे
लिपि | कैथी |
अन्य नाम | कायथी, कायस्थी |
प्रकार | आबुगिडा |
भाषाएँ | अंगिका, अवधी, भोजपुरी, हिन्दुस्तानी, मगही, मैथिली, नागपुरी |
काल | पाँचवी से बीसवीं शताब्दी के मध्य तक |
पैतृक पद्धतियाँ | ब्राह्मी, गुप्ता, नागरी, कैथी |
समकालींन पद्धतियाँ | देवनागरी, नंदनागरी, सिलहटी नागरी एवं गुजराती |
लिखने की दिशा | बाएँ से दाएँ, ऊपर से नीचे |
३. कैथी लिपि का महत्व
नियमित लेखन, साहित्यिक रचना, वाणिज्यिक लेनदेन, पत्राचार और व्यक्तिगत रिकॉर्ड रखने के लिए इस लिपि का उपयोग किया जाता था। प्रशासानिक गतिविधियों के लिए कैथी के उपयोग का प्रमाण सोलहवीं शताब्दी से बीसवीं शताब्दी के पहले दशक तक मिलता है। एक धर्मनिरपेक्ष लिपि होने के बावजूद कैथी का उपयोग साहित्यिक और धार्मिक पांडुलिपियों को लिखने के लिए किया जाता था। इसकी लोकप्रियता की एक बड़ी वजह इसकी सादगी थी।
जन साधारण में काफी लोकप्रिय होने की वजह से क्रिश्चियन मिशनरीज़ ने अपने साहित्यिक रचनाओं का अनुवाद इसी लिपि से किया।
कैथी को सिलेटी नागरी, महाजनी और कई अन्य लिपियों का पूर्वज भी माना जाता है। इसका इस्तेमाल देवनागरी, फ़ारसी और अन्य समकालीन लिपियों के साथ किया जाता था।
बिहार में लोक गीत, सूफी गीत और तंत्र-मंत्र की पुस्तकें भी कैथी लिपि में लिखी जा चुकी हैं। कर्ण कायस्थ की पँज्जी व्यवस्था की मूल प्रति भी कैथी लिपि में ही दरभंगा महाराज के संग्रहालय में सुरक्षित है। पटना म्यूजियम में कैथी लिपि की एक स्टोन स्क्रिप्ट भी संरक्षित है।
४. कैथी लिपि का इतिहास
कैथी का इतिहास |
" एक समय था जब आधे अधिक भारत पर कायस्थों का शासन। कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश,गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत देवपाल गौर कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सातवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं। "
- स्वामी विवेकानन्द
गुप्त काल में राजलिपि के रूप में इसने अपना स्वर्णिम काल देखा।
यह स्पष्ट है कि 16 वीं शताब्दी तक कैथी एक स्वतंत्र और महत्वपूर्ण लेखन प्रणाली के रूप में विकसित हो गयी थी
मुग़ल काल में जनसाधारण की लिपि के रूप में इसका उपयोग अपनी चरम पराकाष्ठा पर था। १५४० में उत्तर भारत के सूरी वंश के संस्थापक बादशाह शेर शाह सूरी ने इसे अपने राज दरबार में आधिकारिक रूप से शामिल किया । उस वक़्त के आधिकारिक दस्तावेज़ों में हुए कैथी लिपि के इस्तेमाल को हम आज भी देख सकते हैं । शेर शाह सूरी ने अपने राज्य में व्यावसायिक लेनदेन के लिए कैथी में मुहरें भी ढलवाईं थीं।
कैथी लिपि में अंकित मुद्राएं - साभार विकिपीडिया
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सत्रहवीं शताब्दी की पांडुलिपियों से पता चलता है कि कैथी एक बेहद सशक्त साहित्यिक माध्यम के रूप में प्रतिष्ठित थी।
19वीं शताब्दी तक बिहार में कैथी को ब्रिटिश प्रशासन की आधिकारिक लिपि के रूप में मान्यता दी गई थी। १८८० में ब्रिटिश सरकार द्वारा इसे प्राचीन बिहार के न्यायालयों में वैधानिक सरकारी लिपि के रूप में भी मान्यता दी गई। १८८१ में इस लिपि के उपयोग पर रोक लगा दी गयी, परन्तु इसकी कार्यकुशलता की वजह से १८८२ में इसे पुनः अपना लिया गया।
१९१३ में इसके इस्तेमाल पर पूर्णरूपेण रोक लगा दी गयी, परन्तु जनसाधारण के बीच अत्यंत लोकप्रिय होने की वजह से १९१४ तक सरकारी दफ्तरों में इसका इस्तेमाल होता रहा। भूमि निबंधन जैसे कार्यों में इस लिपि का उपयोग १९७० तक होता रहा।
कैथी लिपि का प्रभाव विस्तार |
६. कैथी लिपि में कौन सी भाषाएँ लिखी गयी हैं?
कैथी लिपि में लिखी गयी भाषाएँ |
१. बिहारी
२. अवधि
३. भोजपुरी
४. मगही
५. मैथिली
६. बज्जिका
७. उर्दू
८. अन्य भाषाएँ
७. कैथी लिपि और देवनागरी लिपि में अंतर
कैथी देवनागरी
१ पांचवीं शताब्दी में उद्भव दसवीं शताब्दी में उद्भव
२ केवल भारतीय भाषाओं में उपयोग भारतीय एवं कई विदेशी भाषाओं में उपयोग
३ शिरोरेखा नहीं होती शिरोरेखा आवश्यक है
४ दो शब्दों के बीच में दूरी नहीं होती दो शब्दों के बीच में दूरी होती है
५ कई भाषाओं में कैथी में ऊ की मात्रा ( ू ) नहीं होती ऊ की मात्रा ( ू ) होती है
६ कई भाषाओं में कैथी में इ की मात्रा ( ि ) नहीं होती इ मात्रा ( ि ) होती है
७ रेफ एवं चन्द्रबिन्दु ( ँ ) का प्रयोग नहीं होता है रेफ एवं चन्द्रबिन्दु ( ँ ) का प्रयोग होता है
८ प्रश्नवाचक चिन्ह, अल्पविराम और पूर्णविराम प्रयोग नहीं होता। प्रश्नवाचक चिन्ह, अल्पविराम और पूर्णविराम का प्रयोग होता है
कैथी | देवनागरी | |
१ | पांचवीं शताब्दी में उद्भव | दसवीं शताब्दी में उद्भव |
२ | केवल भारतीय भाषाओं में उपयोग | भारतीय एवं कई विदेशी भाषाओं में उपयोग |
३ | शिरोरेखा नहीं होती | शिरोरेखा आवश्यक है |
४ | दो शब्दों के बीच में दूरी नहीं होती | दो शब्दों के बीच में दूरी होती है |
५ | कई भाषाओं में कैथी में ऊ की मात्रा ( ू ) नहीं होती | ऊ की मात्रा ( ू ) होती है |
६ | कई भाषाओं में कैथी में इ की मात्रा ( ि ) नहीं होती | इ मात्रा ( ि ) होती है |
७ | रेफ एवं चन्द्रबिन्दु ( ँ ) का प्रयोग नहीं होता है | रेफ एवं चन्द्रबिन्दु ( ँ ) का प्रयोग होता है |
८ | प्रश्नवाचक चिन्ह, अल्पविराम और पूर्णविराम प्रयोग नहीं होता। | प्रश्नवाचक चिन्ह, अल्पविराम और पूर्णविराम का प्रयोग होता है |
८. कैथी लिपि का पराभव कैसे हुआ?
९. कैथी के अवसान से क्या परेशानियाँ आईं ?
१०. वर्त्तमान परिदृश्य में कैथी लिपि की उपयोगिता
११. कैथी लिपि की पुस्तकें
- कैथी लिपि: एक परिचय
Kaithi Lipi : Ek Parichay ( कैथी लिपि : एक परिचय )
by Dhrub Kumar | Printed - 1 January 2019
Paperback
- कैथी लिपि का इतिहास
१२. कैथी लिपि कैसे सीखें ?
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धन्यवाद् !
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Difference between Language and Script
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What is Kaithi
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Importance of Kaithi
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History of Kaithi
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Area of Extent of Kaithi Script
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Languages written in Kaithi Script
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Difference between Kaithi and Devnagari Script
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Decline of Kaithi Script
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What major problems arose out of the decline of Kaithi
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Relevance of Kaithi in present day context
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Kaithi Books
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How to learn Kaithi ?
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1. Difference Between Language and Script
2. What is Kaithi ?
Kaithi Script |
Script Kaithi Other Names Kayathi, Kayasthi Type Abugida Languages Angika, Awadhi, Bhojpuri, Hindustani, Magahi, Maithili, Nagpuri Time Period Fifth Centry till the middle of the Twentieth Century Paternal Systems Brahmi, Gupta, Nagari Contemprary Systems Devnagari, Nandnagari, Silhoti Nagari and Gujrati Writing Direction Left to Right, Top to bottom
Script | Kaithi |
Other Names | Kayathi, Kayasthi |
Type | Abugida |
Languages | Angika, Awadhi, Bhojpuri, Hindustani, Magahi, Maithili, Nagpuri |
Time Period | Fifth Centry till the middle of the Twentieth Century |
Paternal Systems | Brahmi, Gupta, Nagari |
Contemprary Systems | Devnagari, Nandnagari, Silhoti Nagari and Gujrati |
Writing Direction | Left to Right, Top to bottom |
3. Importance of Kaithi Script
Kaithi was used for regular day to day writing, literary creations, commercial transactions, letter writing and personal record keeping. Evidences of the use of Kaithi for administrative works can be easily found from 16th century till the middle of 20th century.
Many folk songs, Sufi Lyrics and Tantrik Books also have been written in kaithi in Bihar. The original Genealogy documents of Karn Kayasth, which is still lying safe at Darbhanga Maharaj Museum, is also written in Kaithi. A stone script engraved in Kaithi script is preserved at Patna Museum.
4. History of Kaithi Script
History of Kaithi Script |
" एक समय था जब आधे अधिक भारत पर कायस्थों का शासन। कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश,गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत देवपाल गौर कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सातवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं। "
- Swami Vivekanand
Quite evidently, by 16th century, Kaithi has established itself as an important independent writing system.
Its use as common people's script, was at its extreme during the Mughal empire. in 1540, the founder of Suri dynasty in northern India, Emperor Sher Shah Suri, encorporated this script in his court officially for administrative usage. We can see the usage of Kaithi script in the official documents of that time, today also. Sher Shah Suri even mettaled coins engraved in kaithi script for commercial transactions.
Coins engraved in Kaithi Script - with thanks from Wikipedia |
Manuscripts of the seventeenth century clearly tell that Kaithi was well established as a powerful literary medium at that time.
By nineteenth century, Kaithi script was well acknowledged by the British government as the official script of Bihar. In 1880, the British government accepted this script as the legal official script in the courts of Bihar. It was abondoned in 1881 under political influence, but because of its work efficiency, it had to be accepted back.
5. The Geographical Extent of Kaithi Script
Kaithy had a very vast area of its geographical extent. People well acquainted with Kaithy were spread throughout the whole of Bihar, Jharkhand, North Uttar Pradesh and Malda of Bengal. Kaithy was the most popularly used script in areas west of Bengal and in almost the entire of Northern India.
Geographical extent of Kaithi Script
Geographical extent of Kaithi Script |
6. Languages Written in Kaithi Script
Languages written in Kaithi Script
Languages written in Kaithi Script |
Kaithy had been a very powerful script. Many languages have originated from this script. Some of the popular ones are -
6. Bajjika - Extending from the eastern side of river Narayani till the western side of river Bagmati - the north western areas of Bihar, also known as Bajjkanchal, has its language Bajjika. This language is spoken in Samastipur, Sitamadhi, Mujaffarpur, Vaishali, East Champaran, Saran, Shivhar, Darbangha and even in Nepal. The script of Bajjika language is also Kaithi.
7. Urdu - In 1880, the Kaithy script replaced Perso-Arabic in the courts of Bihar. Most of the legal documents of Bihar during the British period were written in Urdu language scripted in Kaithi.
8. Other languages - Kaithi script was also used in the border areas of Bihar. Kaithi script was also used to write Marwai towards the western areas of Rajasthan.
7. Kaithi Script vs Devnagari Script
Though Kaithi and Devnagari share many similarities, yet there are some basic differences as well. The ability to fulfil the need of writing at a super fast pace - this is the difference that imparts Kaithi its speciality.
Some of the major differences between the two are -
Kaithi | Devnagari | |
1 | Started in fifth century | Started in tenth century |
2 | Used in Indian languages only | Used in Indian and some foreign languages as well |
3 | A line above the letters doesn't exist | A line above the letters is compulsory |
4 | There is no inter word space | A space is mandatory between two words |
5 | 'ऊ की मात्रा ( ू ) ' is not used in certain languages | 'ऊ की मात्रा ( ू ) ' is used |
6 | 'इ की मात्रा ( ि ) ' is not used in many languages | 'इ की मात्रा ( ि ) ' is used |
7 | 'रेफ' and 'चन्द्रबिन्दु ( ँ )' are not used in many languages | 'रेफ' and 'चन्द्रबिन्दु ( ँ )' are used |
8 | Question mark, comma and fullstop don't exist | Question mark, comma and fullstop are used as and where required |
8. Decline of Kaithi
The "Divide and Rule" policy of Britishers was the prime reason for the decline of Kaithi.
That time, Kaithi was taught in all schools, but the literacy rate itself was too low. hence, only learned people used to understand Kaithi. Common illiterate people were unable to read or interpret this script.
Using this fact, the Britishers spread the rumor that Kaithi is the script of only the Karn Kayasthas. Kyasthas misuse this script to manipulate the cash books.
Believing this, some people started opposing the use of this script. By 1030-35, this script has reached the verge of extinction.
The first census report of independent India came in 1952. Intentionally Kaithi was not at all mentioned in it.
Apart from this, Devnagari was used by Hindus and Persian by Muslims. On the contrary, Kaithi was used undebatedly by Hindus, Muslims and even Christians. Orthodox people were hence hostile to the use of this script.
Today we are left with only a handful of people knowing Kaithi. This script has almost reached the verge of its death.
Need of the hour is to preserve this huge and ancient script of ours and to increase its awareness among the common people.
The "Divide and Rule" policy of Britishers was the prime reason for the decline of Kaithi.
That time, Kaithi was taught in all schools, but the literacy rate itself was too low. hence, only learned people used to understand Kaithi. Common illiterate people were unable to read or interpret this script.
Using this fact, the Britishers spread the rumor that Kaithi is the script of only the Karn Kayasthas. Kyasthas misuse this script to manipulate the cash books.
Believing this, some people started opposing the use of this script. By 1030-35, this script has reached the verge of extinction.
The first census report of independent India came in 1952. Intentionally Kaithi was not at all mentioned in it.
Apart from this, Devnagari was used by Hindus and Persian by Muslims. On the contrary, Kaithi was used undebatedly by Hindus, Muslims and even Christians. Orthodox people were hence hostile to the use of this script.
Today we are left with only a handful of people knowing Kaithi. This script has almost reached the verge of its death.
Need of the hour is to preserve this huge and ancient script of ours and to increase its awareness among the common people.