कैथी लिपि क्या है | What is Kaithi Script




१. भाषा और लिपि में क्या अंतर है ?


Kaithi Lipi


भाषा हमारे विचारों को व्यक्त करने का साधन है। यह अभिव्यक्ति का मौखिक रूप है। मगही, अवधि, मैथिली, आदि भाषाएँ हैं। 

भाषा की ध्वनियों को लिखने के लिए हम जिन चिन्हों का इस्तेमाल करते हैं, वही उस भाषा की लिपि कहलाती है।यह अभिव्यक्ति का लिखित रूप है। 

कैथी लिपि है - मगही, अवधि, मैथिली, आदि कई भाषाओं की।  




२. कैथी क्या है?


 


 



कैथी, कायथी या कायस्थी नाम से जानी जाने वाली मध्यकालीन उत्तर भारत की बेहद सरल, अत्यंत लोकप्रिय एवं द्रुत गति से लिखी जाने वाली ऐतिहासिक लिपि है। 

कैथी एक प्रमुख स्वतंत्र लेखन प्रणाली है, जिसका उपयोग संपूर्ण उत्तर भारत में, विशेष तौर पर वर्तमान बिहार और उत्तर प्रदेश में किया जाता था। इस लिपि का उपयोग मॉरिशस, त्रिनिदाद, और उत्तर भारतीय प्रवासी समुदाय के लोगों द्वारा आबाद दुसरे क्षेत्रों में भी किया जाता था। 

कैथी का उपयोग भोजपुरी, मगही, हिंदी  उर्दू से सम्बंधित कई अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को लिखने के लिए भी किया जाता था। 


 लिपि  कैथी 
 अन्य नाम   कायथी, कायस्थी 
 प्रकार  आबुगिडा 
 भाषाएँ  अंगिका, अवधी, भोजपुरी, हिन्दुस्तानी, मगही, मैथिली, नागपुरी 
 काल  पाँचवी से बीसवीं शताब्दी के मध्य तक 
 पैतृक पद्धतियाँ  ब्राह्मी, गुप्ता, नागरी, कैथी 
 समकालींन पद्धतियाँ  देवनागरी, नंदनागरी, सिलहटी नागरी एवं गुजराती 
 लिखने की दिशा  बाएँ से दाएँ, ऊपर से नीचे 



३. कैथी लिपि का महत्व


उत्तर भारतीय समाज में कैथी लिपि के महत्व को इस लिपि में नियोजित गतिविधियों और लिखी और छपी हुई सामग्रियों की वृहत संख्या से मापा जा सकता है।  १८५४ में विद्यालयों में देवनागरी के मुकाबले में तीन गुना से भी ज्यादा कैथी लिपि में रचित प्रारंभिक पुस्तकें थीं।  

नियमित लेखन, साहित्यिक रचना, वाणिज्यिक लेनदेन, पत्राचार और व्यक्तिगत रिकॉर्ड रखने के लिए इस लिपि का उपयोग किया जाता था। प्रशासानिक गतिविधियों के लिए कैथी के उपयोग का प्रमाण सोलहवीं शताब्दी से बीसवीं शताब्दी के पहले दशक तक मिलता है। एक धर्मनिरपेक्ष लिपि होने के बावजूद कैथी का उपयोग साहित्यिक और धार्मिक पांडुलिपियों को लिखने के लिए किया जाता था। इसकी लोकप्रियता की एक बड़ी वजह इसकी सादगी थी। 

जन साधारण में काफी लोकप्रिय होने की वजह से क्रिश्चियन मिशनरीज़ ने अपने साहित्यिक रचनाओं का अनुवाद  इसी लिपि से किया। 

कैथी को सिलेटी नागरी, महाजनी और कई अन्य लिपियों का पूर्वज भी माना जाता है। इसका इस्तेमाल देवनागरी, फ़ारसी और अन्य समकालीन लिपियों के साथ किया जाता था। 

बिहार में लोक गीत, सूफी गीत और तंत्र-मंत्र की पुस्तकें भी कैथी लिपि में लिखी जा चुकी हैं। कर्ण कायस्थ की पँज्जी व्यवस्था की मूल प्रति भी कैथी लिपि में ही दरभंगा महाराज के संग्रहालय में सुरक्षित है। पटना म्यूजियम में कैथी लिपि की एक स्टोन स्क्रिप्ट भी संरक्षित है। 

स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद अपनी पत्नी को कैथी लिपि में ही चिट्ठियाँ लिखा करते थे। यदि आप भोजपुरी के शेक्सपीअर कहे जाने वाले स्वर्गीय भिखारी ठाकुर के विषय में जानना चाहते हैं तो आपको कैथी जानने की आवश्यकता होगी। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी एवं भोजपुरी गीतों  पूर्वी धुन के रचयिता श्री महेंद्र मिश्र के विषय में भी कई जानकारियाँ आपको कैथी लिपि में ही मिलेंगीं। चम्पारण आंदोलन के लिए महात्मा गाँधी को बिहार लाने वाले श्री राजकुमार शुक्ल जी की डायरी भी कैथी लिपि में ही मिली है। महान स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय वीर कुंवर सिंह के हस्ताक्षर भी कैथी लिपि में मिले हैं। 




४. कैथी लिपि का इतिहास

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कैथी का इतिहास 

प्राचीन समय में भारत में कई स्थानों पर राजा हुआ करते थे कायस्थ। प्रशासनिक कार्यों के दक्षता से संपादन के लिए उन्होंने कैथी लिपि का आविष्कार किया। 
" एक समय था जब आधे अधिक भारत पर कायस्थों का शासन। कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश,गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत  देवपाल गौर कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सातवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं। "

- स्वामी विवेकानन्द  


इसके अतिरिक्त, अन्य राजाओं के दरबार में भी, दैनिक महत्वपूर्ण जानकारियों को लिपिबद्ध और संरक्षित करने के लिए विशेष तौर पर इस कार्य को तत्परता से क्रियान्वित करने में दक्ष कायस्थों को स्थान दिया जाता था। कायस्थों के द्वारा प्रयुक्त यह लिपि कहलायी - कायस्थी, कायथी और फ़िर कैथी। 

महाजनों के द्वारा बही-खाते लिखने में इस्तेमाल होने के कारण यह महाजनी लिपि भी कहलाई। 

लिपि के इतिहास में क्रमशः ब्राह्मी, खरोष्ठी, कुटीलाक्षय और फिर कैथी लिपि आती है। यह एक अत्यंत प्राचीन लिपि है। इसकी शुरुआत पांचवी-छठी शताब्दी में हुई थी। 

गुप्त काल में राजलिपि के रूप में इसने अपना स्वर्णिम काल देखा। 

यह स्पष्ट है कि 16 वीं शताब्दी तक कैथी एक स्वतंत्र और महत्वपूर्ण लेखन प्रणाली के रूप में विकसित हो गयी थी  

मुग़ल काल में जनसाधारण की लिपि के रूप में इसका उपयोग अपनी चरम पराकाष्ठा पर था। १५४० में  उत्तर भारत के सूरी वंश के संस्थापक बादशाह शेर शाह सूरी ने इसे अपने राज दरबार में आधिकारिक रूप से शामिल किया । उस वक़्त के आधिकारिक दस्तावेज़ों में हुए कैथी लिपि के इस्तेमाल को हम आज भी देख सकते हैं । शेर शाह सूरी ने अपने राज्य में व्यावसायिक लेनदेन के लिए कैथी में मुहरें भी ढलवाईं थीं। 



Kaithi ki muharen
कैथी लिपि में अंकित मुद्राएं - साभार विकिपीडिया 

सत्रहवीं शताब्दी की पांडुलिपियों से पता चलता है कि कैथी एक बेहद सशक्त साहित्यिक माध्यम के रूप में प्रतिष्ठित थी। 

19वीं शताब्दी तक बिहार में कैथी को ब्रिटिश प्रशासन की आधिकारिक लिपि के रूप में मान्यता दी गई थी। १८८० में ब्रिटिश सरकार द्वारा इसे प्राचीन बिहार के न्यायालयों में वैधानिक सरकारी लिपि के रूप में भी मान्यता दी गई। १८८१ में  इस लिपि के उपयोग पर रोक लगा दी गयी, परन्तु इसकी कार्यकुशलता की वजह से १८८२ में इसे पुनः अपना लिया गया। 

१९१३ में इसके इस्तेमाल पर पूर्णरूपेण रोक लगा दी गयी, परन्तु जनसाधारण के बीच अत्यंत लोकप्रिय होने की वजह से १९१४ तक सरकारी दफ्तरों में इसका इस्तेमाल होता रहा। भूमि निबंधन जैसे कार्यों में इस लिपि का उपयोग १९७० तक होता रहा।  
कैथी लिपि का प्रभाव क्षेत्र काफी दूर तक फैला हुआ था। पूरे का पूरा बिहार, बंगाल का मालदा, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश तक इस लिपि को जानने वाले लोग मौजूद थे। बंगाल के पश्चिम की ओर के  क्षेत्रों समेत सम्पूर्ण उत्तर भारत में सबसे ज्यादा लोकप्रिय लिपि थी - कैथी। 


कैथी लिपि का प्रभाव विस्तार





६. कैथी लिपि में कौन सी भाषाएँ लिखी गयी हैं?

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कैथी लिपि में लिखी गयी भाषाएँ 

कैथी एक अत्यंत ही प्रभावशाली लिपि रही है। इस लिपि से कई प्रमुख भाषाओँ का जन्म हुआ है।  इनमें से कुछ प्रमुख भाषाएँ निम्नलिखित हैं -

१. बिहारी 

बिहारी शब्द का इस्तेमाल सर्वप्रथम ग्रियर्सन ने आधुनिक इंडो आर्यन भाषाओं और उनके उप परिवार को इंगित करने के लिए किया था। ग्रियर्सन ने लिखा है, " बिहारी अर्थात बिहार की खास भाषा ", "यह बंगाली और पूर्वी हिंदी के बीच का स्थान लेती है" । अन्य लोगों ने 'बिहारी' शब्द को अपना कर उसका इस्तेमाल  ज़ारी रखा। यही कारण है कि कैथी को बिहार की लिपि कहा जाता है, हालाँकि इसका भौगोलिक विस्तार और प्रभाव बिहार और उसके बहार के क्षेत्रों में भी है। 

२. अवधि  

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और नेपाल में प्रमुख रूप से बोले जाने वाली भाषा 'अवधि' की लिपि भी कैथी है। अवधि का बैसवारी प्रकार भी कैथी में लिखा जाता है। ऐतिहासिक रूप से अवधि कैथी और देवनागरी दोनों लिपि में लिखी जाती है। 

३. भोजपुरी 

उत्तर बिहार की प्रमुख भाषा 'भोजपुरी' की पारम्परिक लिपि भी कैथी है। भोजपुरी बोलने वाली आबादी मध्य प्रदेश,नेपाल, मॉरिशस, गुएना, त्रिनिदाद, साउथ अफ्रीका, सूरीनाम और फ़िजी में भी काफी है। 

४. मगही 


मगही बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल में बोले जानी वाली  एक प्रचलित भाषा है। मगही भाषा की पारम्परिक लिपि भी कैथी है।


५. मैथिली 

मैथिली मुख्यतः बिहार और नेपाल में बोली जाती है।  संविधान की आठवीं अनुसूची के अंतर्गत इस भाषा को भारत की ऑफिशियल भाषाओं में शामिल किया गया है। पारम्परिक रूप से ब्राह्मणों के द्वारा मैथिली लिखने के लिए मिथिलाक्षर लिपि का और कायस्थों के द्वारा कैथी लिपि का उपयोग किया जाता था। 

६. बज्जिका 

नारायणी नदी के पूर्वी तट से लेकर बागमती नदी के पश्चिमी तट तक फैले - बिहार के  उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र, जिसे आमतौर पर बज्जिकांचल भी कहा जाता है, की भाषा है - बज्जिका। समस्तीपुर, सीतामढ़ी, मुज़्ज़फ़्फ़रपुर, वैशाली, पूर्वी चम्पारण, सारण, शिवहर, दरबंघा और नेपाल में भी यह भाषा बोली जाती है। बज्जिका भाषा की लिपि भी कैथी है।

 ७. उर्दू 

 १८८० में परसो-अरबिक के स्थान पर कैथी लिपि का उपयोग बिहार की कचहरियों में होने लगा। ब्रिटिश काल के बिहार के अधिकतर कानूनी दस्तावेज कैथी लिपिबद्ध उर्दू भाषा में हैं। 

८. अन्य भाषाएँ 

बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी कैथी लिपि का उपयोग किया जाता था। राजस्थान के पश्चिमी ओर कहीं-कहीं मारवाड़ी लिखने के लिए भी कैथी भाषा का उपयोग किया जाता था। 





७. कैथी लिपि और देवनागरी लिपि में अंतर

कैथी और देवनागरी लिपि में समानताएँ तो बहुत हैं, किन्तु कुछ मूलभूत अंतर भी हैं। अति तीव्र गति से लिखे जाने की आवश्यकता - यही अंतर कैथी को विशिष्ट बनाती हैं। 

कैथी और देवनागरी के मध्य कुछ प्रमुख अंतर  निम्नलिखित हैं -




 कैथी  देवनागरी 
 १  पांचवीं शताब्दी में उद्भव  दसवीं शताब्दी में उद्भव 
 २  केवल भारतीय भाषाओं में उपयोग   भारतीय एवं कई विदेशी भाषाओं में  उपयोग
 ३  शिरोरेखा नहीं होती  शिरोरेखा आवश्यक है  
 ४  दो शब्दों के बीच में दूरी नहीं होती   दो शब्दों के बीच में दूरी होती है  
 ५  कई भाषाओं में कैथी में ऊ की मात्रा ( ू ) नहीं होती  ऊ की मात्रा ( ू ) होती है  
 ६  कई भाषाओं में कैथी में इ की मात्रा  (  ि ) नहीं होती इ मात्रा  (  ि ) होती है  
 ७  रेफ एवं चन्द्रबिन्दु ( ँ ) का प्रयोग नहीं होता है   रेफ एवं चन्द्रबिन्दु ( ँ ) का प्रयोग होता है
 ८  प्रश्नवाचक चिन्ह, अल्पविराम और पूर्णविराम  प्रयोग नहीं होता।  प्रश्नवाचक चिन्ह, अल्पविराम और पूर्णविराम का प्रयोग होता है





८. कैथी लिपि का पराभव कैसे हुआ?

कैथी लिपि के पराभव के एक नहीं अपितु कई कारण रहे हैं, परन्तु प्रमुखतः अंग्रेज़ों के " फूट डालो और राज करो " नीति की वजह से कैथी के अंत की शुरुआत हुई। 

कैथी उस वक्त हरेक विद्यालय में पढाई जाती थी। किन्तु, खुद साक्षरता दर ही बहुत कम थी। इस कारण से सिर्फ साक्षर लोग ही कैथी पढ़ना जानते थे। आम निरक्षर लोग इसे पढ़ने में खुद को असमर्थ पाते। इस बात का इस्तेमाल कर अंग्रेजों ने आम लोगों के बीच यह अफवाह फैला दी कि कैथी सिर्फ कर्ण कायस्थों की लिपि है। कायस्थ इस लिपि का फायदा उठा कर बही खाते में कुछ भी लिख देते हैं। 

इस बात पर विश्वास कर कुछ लोगों ने इस लिपि का विरोध शुरू कर दिया। १९३०-३५ आते आते यह लिपि खात्मे के कगार पर पहुँच चुकी थी। आज़ाद भारत की पहली जनगणना रिपोर्ट १९५२ में आयी, जिसमे जानबूझकर कैथी लिपि का कहीं भी ज़िक्र नहीं किया गया था। 

इसके अतिरिक्त देवनागरी हिन्दुओं के द्वारा और पर्शियन मुसलमानों के द्वारा अधिक इस्तेमाल की जाती थी। परन्तु कैथी लिपि निर्विवादित रूप से हिन्दुओं और मुसलमानों - दोनों के द्वारा इस्तेमाल की जाती थी। इस कारण से कट्टरपंथी लोग कैथी के इस्तेमाल के पक्षधर नहीं थे।   

आज के समय में कैथी लिपि मात्र कागज़ों में ही सिमट कर गई है। इस लिपि के जानकार आज गिने-चुने ही लोग बचे हैं। यह लिपि आज अपनी विलुप्ति के कगार पर पहुँच चुकी है। आवश्यकता है इस विशाल और प्राचीन लिपि के संरक्षण की और इसके प्रति जन जागरूकता बढ़ाने की। 

 


९. कैथी के अवसान से क्या परेशानियाँ आईं ?

यूनेस्को के एक रिपोर्ट के अनुसार " जब एक लिपि विलुप्त होती है, तो उसके साथ-साथ एक पूरी संस्कृति विलुप्त हो जाती है, एक पूरा इतिहास विलुप्त हो जाता है। 

कैथी लिपि कायस्थों समेत कैथी जानने वाले सभी परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी सिखाई जाती थी। कैथी जानने वाली एक पूरी पीढ़ी ने अपनी नयी पीढ़ी को इस लिपि से अवगत नहीं कराया।  इस लिपि में दर्ज दस्तावेज़ों को दूसरी लिपि में अनुवाद भी नहीं कराया।  

भारत में सबसे अधिक विवादित जमीन बिहार में है। इसका  प्रमुख कारण है कैथी लिपि। भूमि सम्बंधित सभी पुराने कागज़ कैथी में हैं। इन्हें पढ़ सकने वाले लोगों की संख्या न के बराबर है। भूमि सम्बंधित विभाग इन्हे पढ़ नहीं पाते। ना ही बैंक इन कागज़ों के आधार पर लोन ही दे पाती हैं। भूमि विवाद न्यायालयों में सुलझ भी नहीं पाते। 

आज भी इस लिपि में कई प्राचीन और बहुमूल्य जानकारियों को समेटे कई दस्तावेज संरक्षित हैं, किन्तु इन में लिखी जानकारियों को पढ़ सकने वाले लोगों की संख्या काफी नगण्य रह गयी है।  





१०. वर्त्तमान परिदृश्य में कैथी लिपि की उपयोगिता

कैथी लिपि हमारे इतिहास और इतिहास में दर्ज कई बहुमूल्य जानकारियों की साक्षी रही है। पांचवीं शताब्दी से शुरू होने वाली यह लिपि बीसवीं शताब्दी के पहले दशक तक अलग-अलग समयों और जगहों पर जनलिपि, व्यापारिक लिपि, राजकीय लिपि और न्यायप्रणालिक लिपि के रूप में काफ़ी प्रसिद्द, समृद्ध और व्यावहारिक रही है। 

आज भी बिहार, उत्तर प्रदेश, नेपाल, आदि जगहों में भूमि और न्यायालय से सम्बंधित पुराने दस्तावेज कैथी लिपि में मिलेंगें। इन दस्तावेजों को पढ़ने के लिए कैथी के जानकार अमीन की आवश्यकता पड़ती है।  

कई बहुमूल्य जानकारियों की साक्षी होना ही, आज के आधुनिक समाज में इसके प्रासंगिक होने का कारण है। आज इस लिपि के बहुत कम जानकार होना ही यह साबित करता है कि इस लिपि को सीखने-सिखाने की कितनी आवश्यकता है !  





११. कैथी लिपि की पुस्तकें

यदि आप कैथी लिपि के विषय में अधिक जानकारी पाना चाहते हैं तो बाजार में उपलब्ध ये पुस्तकें आप खरीद सकते हैं। 

  • कैथी लिपि: एक परिचय 

यह पुस्तक सालों के शोध के बाद डॉ ध्रुव कुमार द्वारा लिखी गयी है।  इस पुस्तक को आप यहाँ से खरीद सकते हैं।



Kaithi Lipi : Ek Parichay ( कैथी लिपि : एक परिचय )
by Dhrub Kumar  | Printed - 1 January 2019
Paperback

  • कैथी लिपि का इतिहास 

१५ जनवरी १९६८ को जन्मे शोधकर्ता एवं बिहार विधान परिषद् के परियोजना अधिकारी श्री भैरव लाल दास द्वारा रचित पुस्तक " कैथी लिपि का इतिहास "





१२. कैथी लिपि कैसे सीखें ? 



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नम्र निवेदन


-इस विलक्षण लिपि के विषय में उत्तम और सही जानकारी उपलब्ध कराने की पूरी कोशिश की है हमने। यदि कोई त्रुटि रह गयी हो तो कृपया हमें अवश्य अवगत कराएँ।

आप  कैथी लिपि के विषय में और क्या जानकारियाँ पाना चाहेंगें, कृप्या यह भी बताएँ।

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धन्यवाद् !

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ENGLISH TRANSLATION 👉
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1. Difference Between Language and Script

Language is the system of communication used by people to express themselves. It is a verbal form of Communication. There are copious languages like Magahi, Awadhi, Maithili, etc.

Script is a set of symbols used to express the language it pertains to. It is a written form of Communication. Kaithi is a script of many languages like Magahi, Awadhi, Maithili, etc.



2. What is Kaithi ?


Kaithi Lipi
Kaithi Script


Also known as Kayathi or Kayasthi, Kaithi is a very simple to use, very popular and super fast paced historical script of Medival North India.

Kaithi is an independent writing system, which was heavily used throughout the Northern India, especially today's Bihar and Uttar Pradesh.

This script had found its use even in Mauritius, Trinidad and other areas inhabited by Indian diaspora.

Kaithi was even used to write many regional languages related to Bhojpuri, Magahi, Hindi, Urdu, etc.


 Script Kaithi
 Other Names   Kayathi, Kayasthi
 Type Abugida
 Languages  Angika, Awadhi, Bhojpuri, Hindustani, Magahi, Maithili, Nagpuri 
 Time Period  Fifth Centry till the middle of the Twentieth Century
 Paternal Systems  Brahmi, Gupta, Nagari 
 Contemprary Systems  Devnagari, Nandnagari, Silhoti Nagari and Gujrati 
 Writing Direction Left to Right, Top to bottom 



3. Importance of Kaithi Script


We can easily estimate the importance of Kaithi Script by the amount of materials printed in it and by the number of works done in it. in 1854, there were more than thrice the number of primary school books written in Kaithi than in Devnagari. 

Kaithi was used for regular day to day writing, literary creations, commercial transactions, letter writing and personal record keeping. Evidences of the use of Kaithi for administrative works can be easily found from 16th century till the middle of 20th century.

One of the major reasons for its stunning popularity was its simplicity. 

Despite of being a secular script, Kaithi was also used for writing religious and literary manuscripts. Being very popular among the masses, Christian Missionaries used this script for their literary traslations.

Kaithi is regarded as the ancestor script of many other scripts. It shared its timespace with its contemporary scripts like Devnagari, Persian, etc.

Many folk songs, Sufi Lyrics and Tantrik Books also have been written in kaithi in Bihar. The original Genealogy documents of Karn Kayasth, which is still lying safe at Darbhanga Maharaj Museum, is also written in Kaithi. A stone script engraved in Kaithi script is preserved at Patna Museum. 

Dr. Rajendra Prasad, the first President of independent India, used to write letters to his wife in Kaithi only. If you want to know more about The Shakespeer of Bhojpuri - Late Bhikhari Thakur, you need to know Kaithi. To explore the great freedom fighter Mahendra Mishra, who popularised the Poorvi genre of Bhopuri music, you need to know Kaithi script. Sri Rajkuar Shukla, who brought Mahatma Gandhi to Bihar for Champaran Movement, also used to write his diary in Kaithi script only. Signatures of the great freedom fighterVeer Kunwar Singh have also been found in Kaithi.





History of Kaithi Script - www.kaithilipi.com
History of Kaithi Script


In acient India, Kayasthas were kings at many places. They invented Kaithi Script for performing the  day to day administrative work with dexterity.
" एक समय था जब आधे अधिक भारत पर कायस्थों का शासन। कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश,गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत  देवपाल गौर कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सातवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं। "

- Swami Vivekanand


Special system was there in the courts of kings during ancient times in India, to script and secure important information of daily affairs. There used to be people expert in the skill of doing this work with utmost speed. In the due course of time, these people began to be known as Kayasth. Baeing used by the Kayasthas, this script came to be called as Kayasthi, Kayathi and then Kaithi. 

As this script was also used by mahajans for maintaining their financial records (book keeping), this script also came to be known as Mahajani.

Brahmi, Kharoshthi, Kutilakshay and then comes Kaithi in the history of Indian Scripts. This is a very ancient script. It started somewhere around 5th to 6th century.

Kaithi Script experienced its golden era during the Gupta Dynasty.

Quite evidently, by 16th century, Kaithi has established itself as an important independent writing system.


Its use as common people's script, was at its extreme during the Mughal empire. in 1540, the founder of Suri dynasty in northern India, Emperor Sher Shah Suri, encorporated this script in his court officially for administrative usage. We can see the usage of Kaithi script in the official documents of that time, today also. Sher Shah Suri even mettaled coins engraved in kaithi script for commercial transactions.



Kaithi ki muharen
Coins engraved in Kaithi Script - with thanks from Wikipedia

Manuscripts of the seventeenth century clearly tell that Kaithi was well established as a powerful literary medium at that time.
 
By nineteenth century, Kaithi script was well acknowledged by the British government as the official script of Bihar. In 1880, the British government accepted this script as the legal official script in the courts of Bihar. It was abondoned in 1881 under political influence, but because of its work efficiency, it had to be accepted back.

Again in 1913, its usage was completely banned, but beng very popular among the masses, it continued to be used in the government offices till 1914. In works like land registration, Kaithi Script continued to be used till 1970. 


5. The Geographical Extent of Kaithi Script

Kaithy had a very vast area of its geographical extent. People well acquainted with Kaithy were spread throughout the whole of Bihar, Jharkhand, North Uttar Pradesh and Malda of Bengal. Kaithy was the most popularly used script in areas west of Bengal and in almost the entire of Northern India.


Geographical extent of Kaithi Script




6. Languages Written in Kaithi Script

Languages written in Kaithi Script - www.kaithilipi.com
Languages written in Kaithi Script

Kaithy had been a very powerful script. Many languages ​​have originated from this script. Some of the popular ones are -


1. Bihari - The term Bihari was first used by Grierson to refer to the modern Indo Aryan languages ​​and their subfamilies. Grierson wrote, "Bihari means properly language of Bihar", "it occupies a middle place between Bengali and Eastern Hindi". Others continued to use the word 'Bihari'. This is why Kaithy is called the script of Bihar, although it has its geographical spread and influence in Bihar and beyond.

2. Awadhi - The language Awadhi is prominently spoken in Uttar Pradesh, Madhya Pradesh, Bihar and Nepal. Its script is also Kaithy. The Baiswari type of Awadhi is also written in Kaithy. Historically, Awadhi was written in both Kaithi and Devanagari scripts.

3. Bhojpuri - The traditional script of Bhojpuri, the main language of North Bihar, is Kaithy. Bhojpuri-speaking population is also considerable in Madhya Pradesh, Nepal, Mauritius, Guyana, Trinidad, South Africa, Suriname and Fiji.

4. Magahi - Magahi is spoken in Bihar, Jharkhand and West Bengal. The traditional script of Magahi is Kaithy.

5. Maithili - Maithili is spoken in Bihar and Nepal. This language has been included in the official languages ​​of India under the Eighth Schedule of the Constitution. Traditionally, Mithilakshar script was used by Brahmins to write Maithili and Kaithi script was used by Kayasthas.

6. Bajjika - Extending from the eastern side of river Narayani till the western side of river Bagmati - the north western areas of Bihar, also known as Bajjkanchal, has its language Bajjika. This language is spoken in Samastipur, Sitamadhi, Mujaffarpur, Vaishali, East Champaran, Saran, Shivhar, Darbangha and even in Nepal. The script of Bajjika language is also Kaithi.

7. Urdu - In 1880, the Kaithy script replaced Perso-Arabic in the courts of Bihar. Most of the legal documents of Bihar during the British period were written in Urdu language scripted in Kaithi.

8. Other languages ​​- Kaithi script was also used in the border areas of Bihar. Kaithi script was also used to write Marwai towards the western areas of Rajasthan.

7. Kaithi Script vs Devnagari Script 

Though Kaithi and Devnagari share many similarities, yet there are some basic differences as well. The ability to fulfil the need of writing at a super fast pace - this is the difference that imparts Kaithi its speciality.

Some of the major differences between the two are -


 Kaithi

 Devnagari

 1

 Started in fifth century

 Started in tenth century

 2 

 Used in Indian languages only

 Used in Indian and some foreign languages as well

 3

 A line above the letters doesn't exist

 A line above the letters is compulsory

 4 

 There is no inter word space

 A space is mandatory between two words

 5 

 'ऊ की मात्रा ( ू ) ' is not used in certain languages

 'ऊ की मात्रा ( ू ) ' is used 

 6 

 'इ की मात्रा ( ि ) ' is not used in many languages

 'इ की मात्रा ( ि ) ' is used

 7 

 'रेफ' and 'चन्द्रबिन्दु ( ँ )' are not used in many languages  

 'रेफ' and 'चन्द्रबिन्दु ( ँ )' are used

 8 

 Question mark, comma and fullstop don't exist

 Question mark, comma and fullstop are used as and where required

8. Decline of Kaithi

The "Divide and Rule" policy of Britishers was the prime reason for the decline of Kaithi.


That time, Kaithi was taught in all schools, but the literacy rate itself was too low. hence, only learned people used to understand Kaithi. Common illiterate people were unable to read or interpret this script. 


Using this fact, the Britishers spread the rumor that Kaithi is the script of only the Karn Kayasthas. Kyasthas misuse this script to manipulate the cash books. 


Believing this, some people started opposing the use of this script. By 1030-35, this script has reached the verge of extinction. 


The first census report of independent India came in 1952. Intentionally Kaithi was not at all mentioned in it.


Apart from this, Devnagari was used by Hindus and Persian by Muslims. On the contrary, Kaithi was used undebatedly by Hindus, Muslims and even Christians. Orthodox people were hence hostile to the use of this script.


Today we are left with only a handful of people knowing Kaithi. This script has almost reached the verge of its death. 


Need of the hour is to preserve this huge and ancient script of ours and to increase its awareness among the common people.

9. Problems that arose out of the Decline of Kaithi Script


With reference to a report of UNESCO, " When a script declines, an entire culture vanishes with it, an entire history gets deleted".

Kaithi Script was taught generation to generation at home only by people who knew and used that, It was however, very unfortunate that an entire generation didn't educate the new generation anything about this script. They didn't even got any concerned document translated to any other script.

In India, the maximum cases of land disute exists in Bihar. The prime reson is Kaithi Script. All the old land documents are written in Kaithi Script, whereas the number of people who can read this script is quite negligible. Land related departments are incapable to decode them. Bank is not able to issue any loan on such land. Even the courts are not able to solve such land disputes. 

Today also, there are so many valuable documents of the past, written in Kaithi, but the number of people, who can read them, is negligible.





10. Relevance of Kaithi Script in Today's Scenario


Kaithi Script is a prime witness of our ancient history and of the copious valuable information of that time. Starting from the fifth century and spanning to the first decade of the twentieth century this script , at different times and places, has given immense support to people in different ares like personal and mass communication, trade, government administration, legal affairs, and the likes. 

Even today, old land and courts documents of Bihar, Uttar Pradesh, Nepal, etc. will be found in Kaithi Script only. To read these documents, one needs to seek the help of Ameen, a person who can read Kaithi for them.

Being a prime evidence of many valuable information itself is the main reason for the need of this script in today's scenario. Having such an insignificant number of Kaithi aquainted people itself proves how important is it today to learn and teach Kaithi script.




11. Books on Kaithi Script

If you want to explore more about Kaithi, you can refer to these books available in market :

👉   Kaithi Lipi : Ek Parichay

This book has been written by Shree Dhrub Kumar, after his years of research. You can purchase this book here.



Kaithi Lipi : Ek Parichay ( कैथी लिपि : एक परिचय )
by Dhrub Kumar  | Printed - 1 January 2019
Paperback

👉   Kaithi Lipi Ka Itihas

Born on 15th January 1968, researcher and Project Officer of Bihar Vidhan Parishad, Shree Bhairav Lal Das wrote this book - Kaithi Lipi Ka Itihas.






12. How to Learn Kaithi Script ? 



Do you want to learn Kaithi Script ?


Click on the button given below to learn Kaithi Script from home. The course is completely Free of Cost







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Humble Request 

- We have tried our level best to provide accurate information about one of the greatest script of its time. Yet there may exist some flaws. If you come through any such thing, please do let us know, so that we may take appropriate action.

Also, please tell what else would you like to know about Kaithi.

If you want to share some important information about the script, to the society and world, please come ahead and contact us. Your contribution will be published on this site along with your name.


During our lifetime, we receive so much from the society. Its time that we depart our duty - duty to give back.

Thanks !


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